भारत में नौकरी के अभाव में इंजीनियरिंग का करियर अपना आकर्षण खो रहा है | भारत के राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुसार कोर सेक्टर के 92 प्रतिशत इंजीनियर रोजगार के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं |
हाल तक हर साल लाखों की तादाद में बारहवीं पास करने वाले छात्रों की आंखों में इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले का सपना होता था | इसकी वजह यह थी कि तीसरे साल में ही उनको आसानी से नौकरियां मिल जाती थीं. लेकिन विभिन्न वजहों से अब छात्र भविष्य की दूसरी राहें तलाश रहे हैं | इस साल देश के विभिन्न राज्यों में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों की खाली पड़ी लाखों सीटें इस बात का ठोस सबूत है | भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) और राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान (एनआईटी) समेत कुछ कॉलेजों को अपवाद मानें तो निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला लेने वाले छात्रों की तादाद में बीते दो साल से सालाना एक लाख की दर से कमी दर्ज की गई है |
भयावह तस्वीर
भारत में मेडिकल कॉलेजों की तादाद मांग के मुकाबले बहुत कम है | इसलिए छात्रों और उनके अभिभावकों की आंखों में शुरू से ही इंजीनियरिंग पढ़ने-पढ़ाने का सपना होता है. इसकी राह आसान भी थी | देश में निजी तादाद में कुकुरमुत्ते की तरह उगने वाले निजी कॉलेजों में लाखों सीटें उपलब्ध थीं | डॉक्टरी से उलट इंजीनियरिंग में दाखिला लेने वाले ज्यादातर छात्रों को अमूमन कैंपस प्लेसमेंट के दौरान पढ़ाई का तीसरा साल पूरा होते ही नौकरियां मिल जाती थीं | लेकिन इन कॉलेजों में एक ओर जहां आधारभूत ढांचे और दूसरी दिक्कतों की वजह से पठन-पाठन का स्तर गिरा है, वहीं खासकर आईटी क्षेत्र में होने वाली नौकरियों में कटौती की वजह से अब 40 फीसदी छात्रों को भी कैंपस प्लेसमेंट के दौरान नौकरियां नहीं मिल रही हैं | कई कॉलेजों में तो मोटी फीस चुकाने के बावजूद छात्र बी.टेक की डिग्री के साथ बेरोजगार का तमगा लगाए बाहर निकलते हैं |
चालू शिक्षण वर्ष के दौरान देश के कम से कम सात राज्यों, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश और असम के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में लगभग आधी सीटें ही भर सकी हैं. देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों और इस डिग्री का मान्यता देने वाले तकनीकी शिक्षा निदेशालय ने भी इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है | हाल में ओडीशा व मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों ने निदेशालय से मांग और उपलब्धता की स्थिति को ध्यान में रखते हुए ही नए इंजीनियिंरग कॉलेजों को मान्यता देने का अनुरोध किया था |
घटती नौकरियां
इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वालों को हाल तक सूचना तकनीक यानी आईटी क्षेत्र में आसानी से नौकरियां मिल जाती थीं. लेकिन अब ऑटोमेशन और दूसरी वजहों से वहां नौकरियां घटी हैं | भारत की तमाम प्रमुख आईटी कंपनियों का घटता मुनाफा इसका संकेत हैं | घटते मुनाफे और पर्याप्त काम नहीं होने की वजह से कई कंपनियां तो पुराने कर्मचारियों की छंटनी कर रही है | भारत सरकार मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के जरिये निवेश बढ़ाने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसका उतना असर फिलहाल नहीं दिख रहा | देश के राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुसार सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग जैसे कोर सेक्टर के 92 प्रतिशत इंजीनियर और डिप्लोमाधारी रोजगार के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं |
लेकिन विशेषज्ञ इंजीनियरिंग के घटते आकर्षण की दो वजहें मानते हैं | पहली तो यह कि इंजीनियरों के लिए नौकरी का बाजार अब पहले की तरह नहीं बढ़ रहा है | इसके अलावा अब गैर-इंजीनियरिंग क्षेत्रों में भी छात्रों के समक्ष करियर के कई विकल्प उपलब्ध हैं | कैंपस प्लेसमेंट के दौरान नौकरियां नहीं मिलना भी छात्रों के मोहभंग होने की प्रमुख वजह है | ताजा आंकड़े बताते हैं कि बीते साल महज 40 फीसदी छात्रों को ही कैंपस प्लेसमेंट के जरिए नौकरी मिली थी |
विशेषज्ञों की राय
शिक्षाविदों का कहना है कि हर साल जितनी नौकरियां हैं कहीं उससे ज्यादा इंजीनियर पैदा हो रहे हैं | इसके अलावा पठन-पाठन का स्तर ठीक नहीं होने की वजह से कैंपस प्लेसमेंट के दौरान वह कंपनियों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते. यादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास कहते हैं, “हर साल लाखों की तादाद में पैदा होने वाले इंजीनियरों में से ज्यादातर में नौकरी लायक ज्ञान और कुशलता नहीं होती | इसी वजह से उनको नौकरी नहीं मिलती.” पांच साल पहले नैसकाम ने एक सर्वेक्षण में कहा था कि सूचना तकनीक क्षेत्र में काम करने वाले इंजीनियरों में से महज एक-चौथाई के पास ही जरूरी कौशल है | पांच साल बाद भी हालत जस की तस ही है |
विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान कमाई की होड़ में देश में सैकड़ों नए इंजीनियरिंग कॉलेज खुले हैं और सरकार भी तमाम पहलुओं पर विचार किए बिना उनको मान्यता देती रही है | इसी वजह से यह हालत पैदा हुई है. मान्यता देने से पहले मांग और आपूर्ति के अंतर को ध्यान में रखना जरूरी है | सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2015-16 के दौरान देश के तमाम इंजीनियरिंग कॉलेजों में आठ लाख से ज्यादा छात्रों ने दाखिला लिया | लेकिन इस साल महज 3.40 लाख छात्रों को ही नौकरियां मिली हैं – यानी आधे से भी कम को |
तकनीकी शिक्षा निदेशालय के निदेशक एस.के.महाजन कहते हैं, “वर्ष 2011 में देश में इंजीनियरों की भारी मांग थी | इसे ध्यान में रखते हुए कई नए कॉलेज खुले और पुराने कॉलेजों ने सीटों की तादाद बढ़ा दी. लेकिन उसके बाद मांग तेजी से घटी है |” अब हालत यह है कि आवेदकों की तादाद उपलब्ध सीटों के मुकाबले बहुत कम हो गई है | वह बताते हैं कि इंजीनियरिंग के प्रति घटते आकर्षण के चलते हर साल दर्जनों इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो रहे हैं या फिर उनमें सीटें घटाई जा रही हैं |
दूसरे विकल्प
एक प्लेसमेंट एजेंसी की निदेशक ऋतुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, “बाजार में इंजीनियरों के लिए नौकरियां घटी हैं. अब हालत यह है कि नौकरियां बहुत कम हैं और इंजीनियरिंग डिग्रीधारी बहुत ज्यादा | सबसे ज्यादा नौकरियां मुहैया कराने वाला आईटी क्षेत्र भी अब नए छात्रों की जगह अनुभवी लोगों को तरजीह दे रहा है |” छात्रों के सामने अब दूसरे कई विकल्प मौजूद हैं | ऋतुपर्णा बताती हैं, “फार्मेसी और आर्किटेक्चर के छात्रों की मांग बढ़ी है | इन विषयों की सीटें खाली रहने की बजाय बढ़ रही हैं | इसी तरह कई दूसरे वोकेशनल डिग्रीधारकों को आसानी से लुभावनी नौकरियां मिल रही हैं. हाल के वर्षों में होटल मैनेजमेंट के प्रति भी छात्रों में आकर्षण बढ़ा है | ऐसे छात्रों को विदेशों में आसानी से नौकरियां मिल रही हैं |”
अब छात्रों में यह धारणा भी बनी है कि आईटी क्षेत्र में काम के मुकाबले पैसे नहीं मिलते और जिंदगी एक ढर्रे में बंध जाती है | यादवपुर के ही सिविल इंजीनियरिंग छात्र कृष्णेंदु गुप्ता कहते हैं, “अब हमारे सामने कई विकल्प मौजूद हैं. पहले आईटी क्षेत्र में जाना हमारी मजबूरी थी क्योंकि दूसरा कोई विकल्प नहीं था |” यादवपुर के प्रोफेसर पार्थ प्रतिम विश्वास की राय है कि “निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में बेहतर पढ़ाई नहीं होने की वजह से छात्रों को नौकरी नहीं मिलती | इसलिए वे अब दूसरे विकल्प तलाश रहे हैं |.”
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