रोहतक : कभी-कभी इंसान के जीवन में कोई एक ताना भी बहुत बड़ा बदलाव देता है। रोहतक की ही एक महिला के साथ भी ऐसा ही वाक्या कुछ साल पहले हुआ तो उसने उस ताने को चुनौती के रूप में स्वीकार किया और एक ऐसा क्षेत्र चुना जिसका उसके परिवार से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। ऐसे में उसने चुनौतियों को ही हिम्मत बनाया और आगे बढ़ती गई। वही महिला अब फैशन डिजाइनिंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश व प्रदेश का नाम रोशन कर रही है।
महिला ने चुनौतियों से पार पाकर ताना मारने वालों को सही जवाब भी दिया है। यहां हम बात कर रहे हैं अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर ललिता चौधरी की जो मूल रूप से सांपला की लड़की है और बोहर गांव निवासी रविन्द्र के साथ वर्ष 2004 में शादी के बंधन में बंधी।
उन्होंने बताया कि उनकी प्रारंभिक व उच्चतर शिक्षा मंसूरी, देहरादून व हरिद्वार से हुई है। उनके पिता देवी सिंह चिकित्सक थे तो उनका सपना भी डॉक्टर बनने का था। ऐसे में उन्होंने दिल्ली में बीएएमएस में दाखिला लिया हुआ था।
शादी के बाद वर्ष 2004-05 में जब वह अंतिम वर्ष में पढ़ाई कर रही थी तो एक बार दिल्ली में हुए एक फैशन वीक को देखने गई थी। जहां वे एक अंतरराष्ट्रीय फैशन डिजाइनर की बैक स्टेज मदद करने गई तो किसी ने इस क्षेत्र की समझ न होने का उन पर ताना मार दिया। बस फिर क्या था ललिता को वह बात ऐसी चुभी कि उन्होंने पढ़ाई छोड़ फैशन डिजाइनर बनने की ही ठान लिया। ताने को उन्होंने चुनौती के रूप में स्वीकार किया और जुट गई।
सबसे पहले उन्होंने रोहतक में एक बुटीक सेंटर खोला और एक साल तक फैशन डिजाइनिंग को गहराई से समझा। एक साल बाद उन्होंने छोटे-मोटे फैशन शो में भी भाग लेना शुरू किया। इससे उनको मनोबल भी बढ़ता गया। उन्होंने फैशन डिजाइनिंग में पूरी ताकत लगा दी। कई सालों तक इस क्षेत्र में हर पहलू पर खूब मेहनत भी की तो वर्ष 2013 में उनको बैंगलोर में हुए अंतरराष्ट्रीय फैशन वीक में भाग लेने का मौका भी मिल गया। बस फिर क्या था। यहीं उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने परिधानों को जलवा दिखाना शुरू कर दिया। वह अब तक कई अंतरराष्ट्रीय फैशन प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है। ललिता चौधरी अब तक महिलाओं के परिधानों की ही डिजाइनिंग करती थी लेकिन इस साल उन्होंने पुरुषों के परिधानों की भी डिजाइनिंग शुरू कर दी है। महिलाओं के लिए डिजाइन किए जाने वाले उनके परिधानों पर खासतौर पर ऐतिहासिक इमारतों के विषयों की छाप देखी जा सकती है। उनके बनाए गए बनाए व डिजाइन किए परिधानों में रेजा, कथकली व रिजार्ट वियर प्रमुख हैं।
ग्रामीण महिलाओं को रोजगार की तैयारी
ललिता चौधरी का कहना है कि उन्होंने बोहर गांव में भी अब परिधानों की बनाई, डिजाइनिंग व रंगाई का काम शुरू करने की योजना तैयार की है। इसके लिए इन दिनों गांव की ही डेढ दर्जन से अधिक अधेड़ आयु की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिसमें सूत कातना, डाई करना सहित आर्गेनिक तरीके से कपड़े तैयार करने शामिल है। दो-तीन माह में उनका प्रशिक्षण पूरा हो जाएगा और उसके बाद गांव में ही वे बड़े स्तर पर डिजाइ¨नग से जुड़ा काम करेंगी और उनको वेतन भी मिलेगा। इससे ग्रामीण महिलाओं को रोजगार भी मिलेगा और स्किल इंडिया को भी बढ़ावा मिलेगा। फिलहाल परिधानों को डाई के लिए परिधानों को जयपुर या अहमदाबाद भेजना पड़ता है। यहां काम शुरू होने पर सारा काम यहीं हो सकेगा।
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