नई दिल्ली : आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी यानी ऑटोमेशन ने जहां नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं, वहीं इससे कई नौकरियां खत्म होने का डर भी पैदा हो गया। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने भी 5 सालों में 50 लाख नौकरियां कम होने की आशंका जताई है। हालांकि सही मायनों में देखा जाए तो टेक्नोलॉजी ने हमेशा नई नौकरियां पैदा की है, जरूरत सिर्फ इसके सही इस्तेमाल की है। हाल ही में आईएमएफ चीफ क्रिस्टिन लगार्ड ने भी कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से डरने की नहीं थोड़ी तैयारी की जरूरत है।
जॉब लॉस नहीं, स्किल्स पर फोकस जरूरी है
इंटीग्रल सॉल्यूशन्स के प्रोजेक्ट मैनेजर आदित्य मेड़तवाल ने कहा, ‘जॉब्स पर कोई खतरा नहीं है, बशर्ते स्किल्स पर ध्यान दिया जाए। उत्पादन की लागत घटेगी तो नए प्रोजेक्ट के लिए पैसा बढ़ेगा, जो जॉब जनरेट करने में मदद करेगा। मान लीजिए, किसी इंफ्रा प्रोजेक्ट के लिए गड्ढा खोदने में मजदूर 5 दिन लगा रहे हैं। उसी को मशीनों से कुछ घंटों में खोद दिया जाए तो प्रोजेक्ट जल्दी पूरा होगा और वहां नौकरियां भी जल्दी आएगी। जरूरत उन मजदूरों को नई नौकरियों के लिए तैयार करने की है।
नई नौकरियों का सृजन करती है टेक्नोलॉजी
सदियों से नौकरियों का डर दिखाकर टेक्नोलॉजी का विरोध किया जाता रहा है, लेकिन वास्तव में टेक्नोलॉजी हर बार नई नौकरियां लाती है। कंप्यूटर इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। पॉलिसी मेकर्स को टेक्नोलॉजी का लाभ लेने के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोगों की तेजी से बदलते इकोनॉमिक सिस्टम और टेक्नोलॉजी के साथ सामंजस्य बिठाने की क्षमता, साधन और स्किल्स में भी सुधार हो। टेक्नोलॉजी से प्रोडक्शन बढ़ता है और काम तेज होता है, जो इकोनॉमी के लिए फायदेमंद है।
ऐसे करना होगा मुकाबला
हमें सुनिश्चित करना होगा कि नई टेक्नोलॉजी का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। इसकी पहुंच विकसित और विकासशील देशों तक समान रूप से होनी चाहिए। वास्तव में बड़ी चुनौती टेक्नोलॉजी तक सबकी बराबर पहुंच नहीं होना है। समाज के तमाम वर्गों की टेक्नोलॉजी तक पहुंच होनी चाहिए।
Note: News shared for public awareness with reference from the information provided at online news portals.