नई दिल्ली : दुनिया की टॉप कंसल्टिंग कंपनियों में शुमार कैपजेमिनी ने अपने रिसोर्स मैनेजमेंट ग्रुप द्वारा किए जाने वाले लगभग 40 फीसदी काम की जगह आईबीएम के कॉग्निटिव कम्यूटिंग सिस्टम वाटसन के उपयोग का फैसला लिया है। कंपनी के इस फैसले का मतलब है कि उसके लिए काम करने वाले लगभग 40 फीसदी कर्मियों को बाहर का रास्ता देखना पड़ सकता है। यह ट्रेंड महज कैपजेमिनी से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि दुनियाभर में यह किसी आंधी की तरह फैल रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ऑटोमेशन से भारत जैसे देश को अधिक खतरा है। भारत में भी इसकी वजह से कंपनियां अब कम नियुक्तियां कर रही हैं। कम स्किल वाले लोगों को निकाला जा रहा है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करोड़ों जॉब क्रिएट करने के लक्ष्य को भी बड़ा धक्का लग सकता है।
किस तरह के जॉब हैं खतरे में
ऑटोमेशन की वजह से सबसे अधिक खतरा वैसी जॉब पर है, जिसके तहत बार-बार एक ही तरह का काम किया जाता है। यह ट्रेंड सबसे बड़ा झटका मैकेनिकल जॉब को दे रहा है। इससे शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट का काम अधिक कठिन हो गया है। इससे सबसे अधिक प्रभावित सॉफ्टवेयर कंपनियां हैं। हालांकि ऑटोमोबाइल सेक्टर भी इसकी गिरफ्त में आ रहा है। गुड़गांव समेत देश के कई शहरों में ऑटोमोबाइल कंपनियों में हजारों की संख्या में रोबोट काम कर रहे हैं। रोबोट के काम करने से फैक्ट्रियों में बिना रूके 24 घंटे काम हो रहे हैं।
भारत पर असर
अनुमानित रूप से वर्ष 2025 तक भारत की 70 फीसदी आबादी कामकाजी होगी। लेकिन जिस तरह ऑटोमेशन का बोलबाला बढ़ रहा है, उससे साफ है कि यहां की भी एक बड़ी आबादी को जॉब से हाथ धोना पड़ेगा और बड़ी संख्या में लोगों को जॉब के लिए ठोकरें खानी पड़ेंगी। अमरीकी रिसर्च कंपनी एचएफएस रिसर्च का अनुमान है कि ऑटोमेशन की वजह से अगले पांच सालों में भारत की आईटी सर्विस इंडस्ट्री में 6.4 लाख लोगों की जॉब चली जाएंगी। वैसे भी कॉलेज से हर साल निकलने वाले लगभग 16 लाख इंजीनियरों में से महज दो लाख को ही आईटी इंडस्ट्री में जॉब मिल पाती है। नास्कॉम का कहना है कि आईटी में इस साल पिछले साल से कम संख्या में लोग भर्ती होंगे।
कैसे बचेगा भारत
नॉलेज इकोनॉमी के बढ़ते प्रभाव के साथ भारत को भी हर स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ानी होगी। कोडिंग करने वाले इंजीनियर नाकाफी साबित होंगे, उनकी जगह देश को इंजीनियरिंग, गणित और विज्ञान में हजारों ऐसे पीएचडी की जरूरत होगी, जो क्रिटिकल थिंकिंग यानी विषय के सभी पहलुओं पर सोचने में सक्षम हों। देश की सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा व्यवस्थाओं को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वास्तविक क्षमताओं को ध्यान में रखकर अपने कोर्स तैयार करने होंगे। सरकार को 21वीं सदी के हिसाब से अपनी नई शिक्षा नीति बनानी चाहिए। इस नीति के तहत कॉग्निटिव स्किल्स, क्रिटिकल थिंकिंग और इनोवेशन क्षमता बढ़ाने वाली शिक्षा की जरूरत है। सबसे अधिक जरूरत बच्चों के कौशल, इंटेलिजेंस और कॉग्निटिव स्किल्स पर फोकस करने की है।
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