देश भर में हैं 279 टेक्निकल इंस्टिट्यूट्स और 23 फर्जी यूनिवर्सिटीज, “दिल्ली” फर्जीवाड़े में पहले नम्बर पर

नई दिल्ली : मैथिली यूनिवर्सिटी/ दरभंगा, बिहार, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड इंजीनियरिंग, नई दिल्ली, बडागानवी सरकार वल्र्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजेकुशन सोसाइटी, कर्नाटक, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसीन, कोलकाता, महिला ग्राम विद्यापीठ, प्रयाग, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय, मथुरा, उत्तर प्रदेश, नार्थ ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, ओडिशा, इन नामों से प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों का आभास होता है। 12वीं कक्षा से निकलने के बाद जब उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश की मारामारी होती है, तब ऐसे संस्थान उन विद्यार्थियों को वरदान जैसे लगते हैं, जिन्हें कहीं प्रवेश नहीं मिला। जान-पहचान वाले पूछे कि क्या कर रहे हो, कहां पढ़ रहे हो, तो बच्चों के साथ मां-बाप भी बड़ी शान से ऐसे वजनदार नामों वाले कालेजों, विश्वविद्यालयों का उल्लेख करते हैं। इन संस्थानों में प्रवेश के लिए क्या पात्रता थी, फीस कितनी देनी पड़ी और डोनेशन कितना मांगा गया, ऐसे सवाल असहज करते हैं, लिहाजा उन्हें पूछा ही न जाए। लेकिन पूछा जाए तो क्या पता वह भयावह सच्चाई सामने आए, जो अब आई है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने नकली शिक्षा संस्थानों की एक सूची जारी की है, जिसमें उपरोक्त संस्थानों के नाम भी शामिल हैं। इस सूची के मुताबिक देश भर में 23 फर्जी यूनिवर्सिटीज और 279 टेक्निकल इंस्टिट्यूट्स हैं। जिनमें सबसे ज्यादा 7 फर्जी यूनिवर्सिटी दिल्ली में है। दिल्ली में सबसे ज्यादा 66 फर्जी टेक्निकल इंस्टिट्यूट्स भी हैं। यूजीसी ने ऐसे संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य सरकारों को पत्र भी लिखा है। दिल्ली के बाद तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, प.बंगाल, महाराष्ट्र में भी धड़ल्ले से फर्जी यूनिवर्सिटीज चल रही हैं। छात्र इन यूनिवर्सिटीज के जंजाल में न फंसे, इसके लिए एआईसीटीई ने इन संस्थानों को नोटिस जारी किया है। मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय ने हाल ही में राज्य सभा में बताया था कि मंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को पत्र लिखकर फर्जी यूनिवर्सिटीज के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कर जांच कराने को कहा गया है। उन्होंने कहा था कि छात्रों के साथ धोखाधड़ी करने वालों और खुद को यूनिवर्सिटी बताकर फर्जी डिग्री देने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए कहा गया है। मंत्री महोदय का राज्यसभा में बयान, यूजीसी और एआईसीटीई की चेतावनी इनसे जाहिर होता है कि सरकार शिक्षा में फर्जीवाड़ा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के मूड में है। लेकिन किस तरह शिक्षा के क्षेत्र में यह गोरखधंधा फलता-फूलता गया, पड़ताल इसकी भी होनी चाहिए। एक, दो नहीं 23 विश्वविद्यालयों का फर्जी होना कोई छोटी बात नहींहै। यह हजारों, लाखों बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ है।

भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी रहती है और हम अक्सर इस बात पर गर्व करते हैं कि जब बाकी देशों में वृद्धों की जनसंख्या बढ़ेगी या काम करने के लिए लोगों की कमी होगी, तब भारत के पास उसके युवाओं की शक्ति होगी। अब यह विचारणीय है कि इस युवाशक्ति को हम किस तरह की शैक्षणिक खुराक दे रहे हैं। भारत में लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं और यह स्थिति 2045 तक बनी रहेगी। 2011 की जनगणना के अनुसार 23 प्रतिशत युवा बेरोजगार थे और अब छह साल बाद यह प्रतिशत कुछ और बढ़ गया होगा। रोजगार न होने का सीधा संबंध शिक्षा और कौशल विकास से है, और इसकी जिम्मेदारी सीधे सरकार पर बनती है। युवाओं को सपने दिखाने से क्या हासिल होगा, अगर हकीकत में हम उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए संस्थान ही उपलब्ध नहींकरा पा रहे हैं। सरकार ने कई उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थान खोले हैं, जिनकी प्रतिष्ठा विदेशों तक में है, कई निजी क्षेत्र के विश्वविद्यालय भी इसी तरह का दावा करते हैं। लेकिन शिक्षा के नाम पर चल पड़े व्यापार में कई बार सरकार की नाक के नीचे फर्जीवाड़ा होता है और बजाए त्वरित कार्रवाई करने के कड़ाई बरतने का आश्वासन ही मिलता है। याद पड़ता है कि वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ के लगभग सौ निजी विश्वविद्यालयों को बंद करने का आदेश दिया था।

अदालत ने कहा था कि इन विश्वविद्यालयों की स्थापना मनमाने ढंग से की गई और स्तर का कोई ध्यान नहीं रखा गया।  गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ गठन के बाद तत्कालीन अजीत जोगी की सरकार को निजी विश्वविद्यालय खोलने के करीब 125 आवेदन मिले थे जिनमें से सरकार ने 97 को अनुमति दे दी थी। सरकार का कहना था कि वह शिक्षा के क्षेत्र में भी खुली प्रतिस्पर्धा चाहती थी। जो सर्वश्रेष्ठ संस्थान होंगे वे बच जाएँगे और जो चलने के लायक नहीं होंगे वे ख़ुद ही बंद हो जाएँगे, कुछ ऐसी सोच के साथ निजी विश्वविद्यालय खोले गए थे। अन्य प्रदेशों में भी शायद इसी मानसिकता के तरह निजी संस्थानों को चलने की अनुमति सरकारों ने दी होगी और इनमें कुछ ऐसे भी होंगे जिन्होंनेे पैसे के दंभ में सरकार से अनुमति लेना भी आवश्यक नहींसमझा होगा। शिक्षा में मुनाफा कमाने के लिए लाखों विद्यार्थियों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए, तभी यह गोरखधंधा रोका जा सकेगा।

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