फरीदाबाद : जेले सुधारगृह हैं, लेकिन इस बारे में आम धारणा है कि मामूली जुर्म में अंदर गया शख्स भी सुधरने के बजाय और बिगड़ कर बाहर निकलता है। नीमका जेल प्रशासन का प्रयोग अगर सफल रहा है जेल से बाहर आने वाले कैदी कुशल कारीगर बनकर निकलेंगे। रिहाई के बाद उनके पास न केवल नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करने के लिए पूंजी होगी बल्कि हाथ में हुनर भी होगा। उनके पास नौकरी की संभावनाएं मौजूद होंगी। जेल प्रशासन ने आइएम एसएमई (इंटिग्रेटेड एसोसिएशन ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मिडियम एंटरप्राइजेज) ऑफ इंडिया के सहयोग से कपड़ा, वेल्डिंग, वाहनों के कलपुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने और मोटर वाइंडिंग से संबंधित काम के लिए पांच फैक्ट्रियां शुरू की हैं। करीब एक महीने इच्छुक योग्य कैदियों का चुनाव करके कौशल विकास के तहत इन मशीनों पर काम करने का प्रशिक्षण दिया गया। अब यह कैदी इन फैक्ट्रियों में सामान तैयार कर रहे हैं। यहां तैयार माल की जिले के विभिन्न उद्योगों को आपूर्ति की जाएगी। काम के लिए कैदियों को रोजाना मेहनताना भी दिया जा रहा है। यह सीधा उनके बैंक खाते में जाता है। जेल से बाहर आने के बाद वह इस राशि को निकाल सकेंगे। पहले साल 25 कैदियों को इस काम में लगाया गया है। आने वाले समय में ये संख्या बढ़ाई जाएगी।
राजीव चावला, आइएम एसएमई ऑफ इंडिया के चेयरमैन ने कहा कि जब कोई कैदी जेल में आता तो वह पुरानी दुनिया से कट जाता है। कई वर्षों की सजा काटने के बाद जब वह रिहा होता है तो बाहरी दुनिया बदल चुकी होती है। नई तकनीक की जानकारी नहीं होने के कारण उसके लिए काम मिलना मुश्किल होता है। जेल फैक्ट्री में कैदी नई तकनीक से परिचित होते रहेंगे। सजा पूरी होने के बाद जब वह बाहर आएंगे तो उन्हें काम मिल पाएगा। इससे उनके अपराध की दुनिया की ओर जाने की आशंका कम होगी। जेल में बहुत जल्द फूड प्रोसेसिंग फैक्ट्री भी स्थापित की जाएगी।
डीजीपी यशपाल सिंहल ने बताया कि फरीदाबाद के बाद प्रदेश की हर जेल में यह कार्यक्रम शुरू करने की योजना है। हमारा उद्देश्य जेलों को सुधारगृह बनाने का है। यह सुनिश्चित करना है कि जेल से बाहर जाकर कोई भी फिर से अपराध की ओर न जाए। वह नए सिरे से अपना जीवन शुरू करे। इससे समाज में अपराध को कम करने में सहायता मिलेगी।
नीमका जेल अधीक्षक, दीपक शर्मा ने बताया कि इतने बड़े स्तर पर जेल में फैक्ट्री लगाने का प्रदेश में यह पहला प्रयास है। नीमका जेल में 2300 कैदी हैं। इस कदम का एक लाभ यह भी है कि कैदी रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। इससे अपराध की ओर उनका ध्यान नहीं जाता। इसके साथ-साथ जेल में अन्य गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं।