व्यापम में बड़ा खुलासा, कैग रिपोर्ट में दो और मंत्रियों के नाम आए सामने, नियुक्ति में तत्कालीन मंत्री पटेरिया भी जिम्मेदार

भोपाल : व्यापम मामले में अभी तक सिर्फ एक मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का नाम ही था। शुक्रवार को विधानसभा में पेश हुई कैग रिपोर्ट में दो और मंत्रियों के नाम सामने आए। पहला नाम तत्कालीन तकनीकी शिक्षा मंत्री राजा पटेरिया का और दूसरा नाम तत्कालीन राज्यमंत्री तुकोजीराव पवार का है। कैग ने इन्हें व्यापमं में नियुक्तियों का जिम्मेदार माना है।

पटेरिया ने रिटायर्ड उपरीत को प्रतिनियुक्ति पर बनाया था व्यापम का संचालक

रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 अक्टूबर 2002 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजा पटेरिया ने योगेश उपरीत को व्यावसायिक परीक्षा मंडल(व्यापमं) संचालक के पद पर प्रतिनियुक्ति का आदेश जारी किया था।

कैग ने पाया कि उपरीत की नियुक्ति संचालक के पद पर गलत थी, क्योंकि वे रिटायर होने के बाद संविदा आधार पर महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय सतना में कार्यरत थे। उपरीत की अपात्रता पटेरिया को बताकर उन्हें संविदा आधार पर नियुक्ति देने का प्रस्ताव भेजा गया था। यह प्रस्ताव मंत्री के अनुमोदन के बाद मुख्यमंत्री को भेजा गया था। हालांकि मुख्यमंत्री को भेजे प्रस्ताव में उपरीत की अपात्रता का उल्लेख नहीं था।मुख्यमंत्री के अनुमोदन पर 14 फरवरी 2003 को नियुक्ति कर दी गई। कैग ने इसे अनियमित माना क्योंकि इस पद पर इंजीनियरिंग कॉलेज के वरिष्ठ प्राचार्य या विभाग स्तर के अधिकारी ही पात्र थे। जबकि उपरीत इस पात्रता को पूरा नहीं करते थे। कैग ने जब पूछा तो तकनीकी शिक्षा विभाग ने अक्टूबर 2016 में बताया कि उपरीत को हटा दिया गया है, लेकिन अनियमित नियुक्ति पर कोई टिप्पणी नहीं की।

पैनल में नाम नहीं था, फिर भी बना दिया था संचालक

अप्रैल 2011 में तकनीकी शिक्षा विभाग ने तत्कालीन शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को व्यापमं के नियंत्रक पद के लिए तीन नामों का पैनल दिया। लक्ष्मीकांत शर्मा ने पंकज त्रिवेदी को परीक्षा नियंत्रक के रूप में प्रतिनियुक्ति देने के निर्देश दे दिए, जबकि त्रिवेदी का नाम पैनल में था ही नहीं। उनकी नियुक्ति दो साल के लिए थी। मई 2011 में उन्होंने कार्य संभाला। कैग ने पाया कि त्रिवेदी इस पद के लिए न्यूनतम योग्यता ही नहीं रखते थे। उनके पास परीक्षा कार्य का कोई अनुभव नहीं था।

जून 2011 से जुलाई 2012 तक त्रिवेदी के पास संचालक पद का अतिरिक्त प्रभार भी था। फिर 28 जुलाई 2012 को त्रिवेदी को नियंत्रक के साथ निदेशक के पद पर भी पदस्थ कर दिया गया। त्रिवेदी 28 जुलाई 12 से 30 जुलाई 13 तक दोनों पदों पर एक साथ रहे। सरकार ने अक्टूबर 2016 में स्वीकार किया कि विभाग के पास त्रिवेदी की योग्यता और अनुभव के कोई दस्तावेज नहीं थे और न ही उनकी कोई जांच की गई थी।

योग्यता ही नहीं रखते थे भदौरिया

सुधीर सिंह भदौरिया की नियंत्रक के रूप में नियुक्ति को गलत माना। यह नियुक्ति तत्कालीन राज्यमंत्री तकनीकी शिक्षा तुकोराजीराव पवार ने की थी। पवार ने आधार दिया था कि भदौरिया योग्यता व अनुभव पूरा रखते हैं, जबकि कैग ने पाया कि भदौरिया की नियुक्ति के लिए न कोई पैनल तैयार हुआ और न विज्ञापन जारी किया गया। मंत्री ने नियमों का पालन किए बिना नियुक्ति कर दी। इसके बाद 2012-13 में भर्ती परीक्षाओं में अनियमितताओं का संदेह होने के बावजूद इनकी प्रतिनियुक्ति अवधि मार्च 2013 में दो साल के लिए और बढ़ा दी गई।

अक्टूबर 2003 में नितिन मोहिंद्रा और अजय कुमार की नियुक्ति व्यापमं में की गई। इनके वेतनमानों के अपग्रेडशन में अनियमिता हुई थी, जिसके लिए तत्कालीन व्यापमं नियंत्रक एके श्रीवास्तव और संचालक योगेश उपरीत जिम्मेदार थे। इसका प्रतिवेदन भी तकनीकी शिक्षा विभाग को सामान्य प्रशासन विभाग को 25 अगस्त 2004 में भेजा गया था।

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