मध्य प्रदेश : प्रदेश के इंजीनियरिंग संस्थाओं की 50 प्रतिशत सीटें नहीं भर पा रहीं हैं। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि छात्रों को पता ही नहीं कि इंडस्ट्री की मांग क्या है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के क्रियान्वयन और तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता सुधार पर मंथन के लिए संचालनालय तकनीकी शिक्षा द्वारा आयोजित कार्यशाला में यह बाते सामने आईं। कार्यशाला में विभागीय अधिकारियों ने शासन की योजनाओं को रखा जबकि निजी संस्थाओं के संचालकों ने योजनाओं के क्रियान्वयन की व्यवहारिक कमियां बताईं। लगभग दो घंटे के पहले सत्र में कई महत्वपूर्ण बाते निकल कर आईं।
ये आए सुझाव – यह पता लगाया जाए कि वर्तमान में इंडस्ट्री की डिमांड क्या है और उसे किस तरह पूरा किया जा सकता है।
– इसमें आईटीआई, पॉलीटेक्निक से लेकर बीई या उससे ऊंची डिग्री करने वाले सभी विद्यार्थियों को शामिल कर इंडस्ट्री के हिसाब से पढ़ाई और कौशल विकसित किया जाए।
– विद्यार्थियों में गुणवत्ता विकसित करने के लिए पूल बनाएं। जिनके पास अधिक गुणवत्ता की लैब हो विद्यार्थियों को एक दूसरे के यहां भेजकर तकनीकी रूप से दक्ष किया जाए।
– विद्यार्थियों को केवल डिग्री देने के लिए प्रवेश न दिया जाए बल्कि उन्हें तकनीकी रूप से दक्ष भी किया जाए। इसके लिए 100 प्रतिशत उपस्थिति और 100 प्रतिशत कक्षाओं के लगने पर जोर दिया जाए।
सब जगह गेट (GATE) अनिवार्य क्यों – जीएसआईटीएस इंदौर के डायरेक्टर आरके सक्सेना ने सवाल खड़ा किया इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों का अब एक ही लक्ष्य रह गया है गेट। सरकार ने हर जगह इसकी बाध्यता कर दी है जो कि सही नहीं।
प्रायोगिक तौर पर पांच-पांच संस्थाओं में हो लागू – एसोसिएशन ऑफ टेक्निकल एडं प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट के सचिव बीएस यादव ने कहा कि कौशल विकास जैसी योजनाओं को प्रायोगिक तौर पर सीमित निजी और सरकारी संस्थाओं में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाए। बेहतर परिणाम आने पर इनकी संख्या बढ़ाई जाए। प्रमाणपत्र कौन देगा इनकी मान्यता क्या होगी, इस पर भी विचार किया जाए |
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