व्यापमं को लेकर 34 साल तक भ्रम में रही सरकार, कैग ने माना कि मंडल के साथ-साथ विभाग ने संचित निधि का किया गलत उपयोग

भोपाल (मध्य प्रदेश) : सरकार मंडल की स्थापना के बाद 34 साल तक इसकी कार्यप्रणाली और जिम्मेदारी को लेकर भ्रम की स्थिति रही। मंडल की स्थापना 1982 में प्रदेश के इंजीनियरिंग, मेडिकल, एग्रीकल्चर व पॉलीटेक्निक संस्थानों में प्रवेश परीक्षा कराने के लिए की गई थी। शुरू में मंडल के शासकीय विभाग होने या न होने के बारे में भ्रम था। शासन ने 1982 की अधिसूचना में स्पष्ट किया था कि राज्य सरकार व्यापमं द्वारा किए गए कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होगी। बाद में विधि विभाग ने 1994 में राय दी कि मंडल की स्थिति मप्र शासन के एक भाग की है आैर यह एक स्वतंत्र इकाई नहीं है। इसके बाद 2003 में हाईकोर्ट जबलपुर ने स्पष्ट किया कि मंडल शासन का विभाग है। राज्य शासन का हिस्सा होने के बावजूद मंडल की प्राप्तियों व व्यय को शासकीय लेखों में शामिल नहीं किया गया।

इस प्रकार शासन ने शुरुआत से ही मंडल की स्थिति पर दोहरा दृष्टिकोण अपनाए रखा। मंडल को सांविधिक मान्यता प्रदान करने के लिए विधि विभाग ने 1983 में एक विधेयक तैयार किया था लेकिन इसे शासन ने राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत ही नहीं किया। मप्र व्यापमं अधिनियम 2007 को राज्य विधानमंडल ने अगस्त 2007 में पारित किया था। लेकिन शासन ने अधिनियम लागू होने के बाद भी सांविधिक मंडल की स्थापना में देरी की। इसके आठ साल बाद मार्च 2016 में शासन ने एमपीपीईबी को एक सांविधिक मंडल के रूप में स्थापित किया।

रिपोर्ट के अनुसार मंडल द्वारा आरजीपीवी को राशि देने की चर्चा के लिए दिसंबर 2014 में सचिव स्तरीय बैठक हुई थी। इसमें मंडल के अध्यक्ष, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग के सचिव, वित्त विभाग के प्रमुख सचिव और विधि विभाग के अपर सचिव मौजूद थे। समिति की राय थी कि इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण के लिए मंडल से अनुदान लेने का प्रावधान एमपीपीईबी एक्ट में नहीं है।

यदि शासन मंडल द्वारा आयोजित परीक्षाओं के आयोजन के अलावा मंडल की राशि का उपयोग अन्य गतिविधियों में करना चाहती है तो इसके लिए पहले एक्ट में बदलाव करना होगा। लेकिन समिति की राय को दरकिनार कर तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग ने मार्च 2015 में आरजीपीवी को 41 करोड़ रुपए देने की स्वीकृति प्रदान कर दी। जिसमें से 10 करोड़ की राशि मई 2015 में दी गई।

किस संस्थान को कितना पैसा दिया पल्ला झाड़ा… शासन ने खुद को अलग किया

मंडल ने कुल 13.75 करोड़ रुपए का भुगतान विभाग के आदेश से अपने स्तर पर ही अन्य संस्थाओं को किया। जांच के दौरान बताया गया कि मंडल को अपनी संचित निधि का उपयोग करने का अधिकार है और आरजीपीवी को 41 करोड़ रुपए कैबिनेट के अनुमोदन पर दिए गए हैं। जबकि कैग ने माना है कि मंडल के साथ-साथ विभाग ने अपनी सुविधा के अनुसार मंडल की संचित निधि का गलत उपयोग किया, वहीं शासन ने मामले में खुद काे मंडल से अलग रखा।

संस्थान                     राशि                        किस काम के लिए

आरजीपीवी  :    Rs. 10 करोड़           शहडोल में नए इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना के लिए

एनएलआईयू :   Rs.1.60 करोड़        परियोजना में प्रस्तावित कार्य

आईईएचई :      Rs. 1.15 करोड़      भवन निर्माण

क्रिस्प :              Rs. 1 करोड़           भोपाल में आईटी ट्रेनिंग सेंटर शुरू करने के लिए

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