कौशल विकास निगम (एचपी-केवीएन) का बदल गया प्रारूप , नए सिरे से गठन किया जाएगा निदेशक मंडल

शिमला : पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में गठित कौशल विकास निगम (एचपी-केवीएन) के प्रारूप को बदल दिया गया है।  कौशल विकास निगम को वित्त विभाग के बजाए तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन कर दिया गया है। इस मामले को कैबिनेट से वाया सर्कुलर ही पास करवा लिया गया है। सरकार इसके पीछे तर्क दे रही है कि वित्त विभाग के पास फील्ड में इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है। कौशल विकास निगम साल भर ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाता है, जिसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी आड़े आती है। तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन जो कोर्सेज चले हुए हैं उसी तरह की ट्रेनिंग ओर कोर्सेज कौशल विकास निगम भी इन्हीं संस्थानों से करवाता है। ऐसे में इसे तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन किया गया है।

उद्योग विभाग अपने अधीन लेना चाहता था निगम को

उद्योग विभाग भी कौशल विकास निगम को अपने अधीन लेना चाहता था। इसके लिए फाइल मूवमेंट भी शुरू हो गई थी। उद्योग विभाग का तर्क था कि इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, प्लेसमेंट के लिए उनका विभाग बेहतर कार्य कर सकता है। लेकिन विभाग के पास भी ट्रेनिंग के लिए प्रर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था। जिसके चलते राज्य सरकार ने इसे तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन किया।

सरकार ने 100 करोड़ के बजट का किया प्रावधान

पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में कौशल विकास निगम का गठन किया गया था। इसका मकसद युवाओं को ट्रेंड कर रोजगार परक बनाना था। निगम ने प्रदेश के सभी जिलों में ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू किए हैं। 25 हजार युवाओं को एक साल में ट्रेंड करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। राज्य सरकार ने इसके लिए सौ करोड़ के बजट का प्रावधान भी किया हुआ है।

नए सिरे से गठित होगी बीओडी

सरकार के इस फैसले के बाद कौशल विकास निगम के निदेशक मंडल का नए सिरे से गठन किया जाएगा। मुख्यमंत्री, उद्योग मंत्री, तकनीकी शिक्षा मंत्री के अलावा मुख्य सचिव, सचिव वित्त के अलावा गैर सरकारी सदस्य निदेशक मंडल में शामिल थे। अब तकनीकी शिक्षा सचिव सहित कुछ अन्य अधिकारियों को बोर्ड में शामिल किया जाएगा। राज्य सरकार ने अभी तक कौशल विकास निगम में गैर सरकारी सदस्यों की तैनाती नहीं की है।

संस्थानों की वैद्यता पर भी नहीं उठ सकेंगे सवाल

हर बार कौशल विकास निगम के पास पंजीकृत संस्थानों की वैद्यता पर सवाल उठते हैं। विपक्ष के निशाने पर संस्थान आैर इन्हें पंजीकृत करने वाले अधिकारी रहते हैं। अब उसी संस्थान से पंजीकृत संस्थानों पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। पिछली बार शिकायतों के बाद कुछ संस्थानों के पंजीकरण को बाद में रद्द किया था।

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