अहमदाबाद : गुजरात में 20 फीसदी से भी कम ग्रैजुएट इंजिनियर्स को नौकरी मिलती है। कुछ ब्रांच जैसे सिविल इंजिनियरिंग में तो कैंपस प्लेसमेंट की स्थिति बहुत ही निराशाजनक है। यहां सिर्फ 5 फीसदी छात्रों का ही प्लेसमेंट हो पाता है। 2015-16 के लिए जारी हुए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के आकंड़ों से खुलासा हुआ है कि कंप्यूटर साइंस में पास हुए 11,190 छात्रों में से सिर्फ 3,407 छात्रों को नौकरी मिली।
उसी साल 17,028 छात्रों ने मकैनिकल इंजिनियरिंग का कोर्स पूरा किया जिनमें से सिर्फ 4,524 छात्रों का प्लेसमेंट हुआ। इंजिनियरिंग की अन्य ब्रांच के आंकड़े भी काफी निराशाजनक है। राज्य भर में इंजिनियरिंग की 71,000 सीटों में से साल 2016 में 27,000 सीट खाली थी।
ग्रैजुएट इंजिनियर्स के निराशाजनक प्लेसमेंट के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि मांग से अधिक इंजिनियरिंग ग्रैजुएट्स की डिमांड, शिक्षा की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम एवं उद्योग जगत की आवश्यकता के बीच भारी गैप और सॉफ्ट स्किल्स की कमी के कारण ऐसा हो रहा है। आइये जानते हैं इसका मुख्य कारण क्या है और अन्य लोगों की इस पर क्या राय है…
कैंपस प्लेसमेंट्स बनाम जॉब्स
इस मामले में गुजरात टेक्नॉलजिकल यूनिवर्सिटी की निदेशक राजुल गज्जर का कुछ और ही कहना है। उन्होंने बताया कि एआईसीटीई के आंकड़ों में सिर्फ उन छात्रों की बात की गई है, जिनका कैंपस प्लेसमेंट हुआ है। कुछ छात्र आगे की पढ़ाई करते हैं तो कुछ का बाद में प्लेसमेंट होता है, जिनके आंकड़े को इसमें दर्ज नहीं किया गया है। रोजगार और प्लेसमेंट्स पूरी तरह अलग पहलू हैं। इसलिए एआईसीटीई के आंकड़ों से सही तस्वीर सामने नहीं आती है।
दूर-दराज इलाकों के कॉलेजों की खराब हालत
एलडी कॉलेज ऑफ इंजिनियरिंग (एलडीसीई) के प्रिंसिपल और एसीपीसी के सदस्य सचिव ने जी.पी.वडोदरिया ने बताया कि सभी कॉलेज की एक जैसी हालत नहीं है। कुछ कॉलेज जैसे एलडीसीई, पीडीपूय और निरमा का प्लेसमेंट के मामले में बहुत अच्छा ट्रैक रेकॉर्ड है। प्लेसमेंट की बुरी हालत दूर-दराज इलाकों के कॉलेजों में है।
शिक्षकों की गुणवत्ता बड़ा कारण
विश्वकर्मा राजकीय इंजिनियरिंग कॉलेज के इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्यूनिकेशंस के प्रफेसर अल्पेश दाफदा ने बताया कि रोजगार के अवसर पास होने वाले छात्रों के मुकाबले बहुत कम हैं। उन्होंने कहा, ‘सरकारी कॉलेजों में विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से गुजरने के बाद सही शिक्षकों का चयन होता लेकिन प्राइवेट कॉलेजों की स्थिति अलग है। प्राइवेट कॉलेज को क्वॉलिटी टीचर्स नहीं मिलते हैं। ज्यादातर उनके शिक्षकों को अनुभव की कमी होती है और आधा-अधूरा ज्ञान होता है, यही चीज वे आगे छात्रों को बढ़ाते हैं। इस कारण सभी छात्रों का प्लेसमेंट नहीं हो पाता है।’
इंजिनियरों की डिमांड
एसएएल टेक्निकल कैंपस के डायरेक्टर रुपेश वसानी ने बताया कि एमबीए और एमसीए करने वाले छात्रों को सैलरी के नाम पर महज 6,000 से 8,000 रुपये मिलते हैं। लेकिन इंजिनियरिंग की आकांक्षाएं काफी होती हैं। हालांकि कंपनियां उनको 10,000 से 15,000 रुपये ऑफर करती हैं लेकिन फ्रेश इंजिनियर्स इसे मना कर देते हैं। वसानी ने यह भी बताया कि पहले साइंस के बेस्ट स्टूडेंट का ही इंजिनियरिंग में दाखिला हो पाता था क्योंकि प्रतियोगिता बहुत मुश्किल थी। आज बड़ी संख्या में इंजिनियरिंग कॉलेज खुल गए हैं जो योग्यता को किनारे रखकर किसी भी छात्र को दाखिला दे देते हैं।
प्रैक्टिकल ज्ञान जरूरी
असोसिएशन ऑफ सेल्फ फाइनैंस कॉलेजेज ऑफ गुजरात के अध्यक्ष जनक खांडवाला ने बताया कि पाठ्यक्रम को इंडस्ट्री की जरूरत के मुताबिक बनाया जाना है। कॉलेजों को अपने छात्रों के लिए इंटर्नशिप पर और उनको वास्तविक दुनिया दिखाने की जरूरत है।
सॉफ्ट स्किल्स की कमी
प्लेसमेंट हेड्स किसी जॉब के लिए आवश्यक सॉफ्ट स्किल्स पर भी गौर करते हैं। एसएएल टेक्निकल कैंपस में ट्रेनिंग ऐंड प्लेसमेंट हेड सिंपल जोशी ने बताया, ‘सिर्फ 30 फीसदी प्लेसमेंट ही टेक्निकल नॉलेज की बुनियाद पर होता है बाकी 70 फीसदी छात्र की कम्यूनिकेशन और सॉफ्ट स्किल्स पर होता है। ऐसी बात नहीं है कि गुजरात में रोजगार की कमी है बल्कि छात्रों में कम्यूनिकेशन स्किल्स की कमी है।’