जबलपुर (मध्यप्रदेश) : जबलपुर में प्रधानमंत्री कौशल विकास केन्द्र की घोषणा हो गई है। इसका काम जल्द शुरू होने पर उद्योगों के लिए यह संजीवनी तो होगी, वहीं महाकोशल क्षेत्र से बड़े पैमाने पर युवाओं का महानगरों की ओर पलायन भी कम होगा। जबलपुर में संसाधन और सुविधाएं नहीं होने से अभी कुशल वर्कर का प्रतिशत कम है। इसके शुरू होने से संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में कुशल वर्कर मिलेंगे। जिले की निजी उद्योग इकाइयों में पांच हजार वर्कर काम करते हैं। असंगठित क्षेत्र में करीब तीन लाख वर्कर हैं।
इनमें महज पांच हजार स्किल्ड, 30 हजार सेमीस्किल्ड हैं। प्रत्येक छोटे-बडे़ उद्योग में 10 फीसदी कुशल वर्कर की जरूरत होती है। 10 फीसदी अद्र्धकुशल एवं 75 से 80 फीसदी अकुशल श्रमिक होने चाहिए, लेकिन जिले के रिछाई एवं अधारताल सहित निजी भूमि पर लगे लघु, मध्यम और वृहद उद्योगों में इनकी कमी बनी हुई है। 12 महीने इंडस्ट्री के गेट पर कुशल श्रमिकों की आवश्यकता का बोर्ड लगा रहता है। इसकी वजह प्रशिक्षण संस्थानों की कमी होना है। इस काम में प्रधानमंत्री कौशल विकास केन्द्र बड़ी भूमिका अदा कर सकता है।
बाहर से आते हैं कुशल वर्कर
जरूरत के मुताबिक कुशल वर्कर दूसरे प्रदेशों से बुलाने पड़ते हैं। उद्योगपतियों के अनुसार आईटीआई जैसे प्रशिक्षण संस्थानों में जिन टे्रड की पढ़ाई कराई जाती है, उससे उद्योगों की आवयकता पूरी नहीं होती। अच्छी फैकल्टी नहीं होने के कारण प्रशिक्षण भी ठीक से नहीं दिया जाता।
नए केन्द्र से आस
शहर में प्रस्तावित प्रधानमंत्री कौशल विकास केन्द्र इस मामले में कारगर साबित हो सकता है। इसकी खासियत यह है कि पारम्परिक तकनीकी कार्यों में लगे लोगों को भी प्रशिक्षण एवं सर्टिफिकेट मिलेगा। वर्तमान उद्योगों की जरूरत के मुताबिक नई टे्रड का प्रशिक्षण भी मिलेगा।
असंगठित क्षेत्र
12 प्रतिशत स्किल्ड, 15 प्रतिशत सेमीस्क्ल्डि, 73 प्रतिशत अनस्किल्ड
महासचिव महाकोशल उद्योग संघ, डीआर जेसवानी का कहना है कि अक्सर कुशल श्रमिकों की कमी रहती है। अधारताल-रिछाई या दूसरे औद्योगिक क्षेत्रों में इकाइयों के प्रवेशद्वार पर श्रमिकों की आवश्यकता का विज्ञापन लगा रहता है। बाहर से श्रमिक बुलाने पड़ते हैं। उन पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। इससे उत्पादों की लागत पर फर्क पड़ता है। अखिल मिश्र, सह-प्रवक्ता महाकोशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अनुसार यह सही है कि यहां उद्योग या निर्माण क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी है। उत्पादन और निर्माण पर इसका प्रभाव पड़ता है। अपेक्षित परिणाम सामने नहीं मिलता। प्रधानमंत्री कौशल विकास केन्द्र इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है।
अरुण दुबे, पूर्व चेयरमैन,रीजनल एडवायजरी कमेटी केन्द्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड कहते हैं कि बिहार, ओडिशा, राजस्थान और गुजरात की तुलना में मप्र में तकनीकी कौशल बेहद कम है। इसका कारण जागरुकता में कमी भी है। सरकारी और निजी स्तर पर संस्थाओं का अभाव रहा है। इस कारण यहां के लोगों को उचित काम नहीं मिल पाता। उन्हें कुशल श्रमिक बनाने के लिए उच्च स्तर पर प्रयास करने की जरुरत है।
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